बरसे मेघ धरा पर ऐसे ,
जैसे झूमे तुम और मैं ।
बूँद ने चूमा धरती को ऐसे,
जैसे चूमे तुम और मैं ।
किसी बूँद ने सागर देखा,
किसी बूँद ने प्यासे को।
किसी बूँद ने आकर देखा,
तेरे आँखों के काजल को।
बिजली कड़क रही है देखो, आओ झूमे तुम और मैं।
पहली बरखा पहली मोहब्बत ,
आओ भीगे तुम और मैं।
जैसे गरजते हो तुम बादल
वैसे गरजती वो भी है।
जैसे बरसते हो तुम बादल,
वैसे बरसती वो भी है।
आओ झूमे धूम मचाए मस्ती मैं गाये तुम और मैं ।
जैसे लिपटे बादल हैं वैसे ही लिपटे तुम और मैं।
तुम आयी मेरे जीवन मैं,
खुशियों की सौगात हुयी।
तुम आई तो भौरों की,
फूलों संग आंखें चार हुयी।
आओ आंख मिचोली खेले ,
प्यार निभाए तुम और मैं।
आओ बरसे धरती पर,
इसे स्वर्ग बनाये तुम और मैं।।
दिपांशु कुँवर, haldwani
July 2, 2019
Kya bat hai kuwar ji bahut achhi poem likho hai
July 3, 2019
बहुत बहुत धन्यवाद
July 2, 2019
Very good going brother….. Keep it up
July 3, 2019
धन्यवाद
July 3, 2019
Behad khoobsurat kavita or alfaaz
July 3, 2019
बहुत बहुत धन्यवाद