September 23, 2017 0Comment

बदलता जमाना

अब कोई है न सीता
वह धनुष जो उठाए
कोई है ना राम
जो शिव धनुष जो तोड़े ।

अब केवल दशानन
इंसान हैं सारे।
मंथरा कैकेई से नारी के साये।
थे तब रीछ बानर भालू भी अपने
गिलहरी काग, गरुड़ भी स्वजन थेेे

अब भाई भाई की हैं सुपारी ही देते,

कैसा समय
ये आ गया इस धरा पे
मानव न मानव को भाता जमी पे।

-पुष्पलता जोशी, पुष्पांजलि, हल्द्वानी

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