बचपन से आंखों में जिनकी सूरत हैं छाई,
हाथ पकड़ जिनकी मैं चल पाई,
गोद में मैं जिनकी पहली बार खिलखिलाई
वो मेरे पापा हैं, मेरी परछाईं।
मुसीबतों की बाढ़ जब मुझमें आईं,
मजबूत हौसले और बात उनकी याद आई।
बाजार की सजावटें जब मेरे मन को भाई,
चाहे जेब खाली हो फिर भी उन्होंने चीज दिलाई,
वो मेरे पापा हैं, मेरी परछाईं।
चाहे गलती मेरी हो फिर भी डांट दूसरों को लगाई,
मेरी इच्छा को पूरी करने के लिए,
अपनी जरूरतें भुलाई, चाहे घर में हो एक रोटी
सबसे पहले मुझे खिलाई,
वो मेरे पापा हैं, मेरी परछाईं।
-गरिमा जोशी, श्री साईं सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी