प्रेम का सागर ले आते, फिर चाहे कुछ न कह पाते पिता,
दुख के हर कोने में पड़े, वो रहते पिता,
पूजे जाते शिव सदा और पी रहे विष पिता।
पिता एक उम्मीद है, एक भविष्य की आस है।
परिवार की हिम्मत और विश्वास है।
बाहर से सख्त अंदर से नर्म है,
उसके दिल में दफन कई मर्म है।
पिता संघर्ष की आंधियों में, हौसलों की दीवार है,
परेशानियों से लड़ने को, दो धारी तलवार है।
पिता जिम्मेदारियों से, लदी गाड़ी का सारथी है,
सबको बराबर का हक दिलाता, यही एक महारथी है।
पिता जमीर है, पिता जागीर है,
जिसके पास ये है, वह सबसे अमीर है।
कहने को सब उपर वाला देता है
पर खुदा का ही एक रूप पिता का शरीर है।
मेरा साहस, मेरी इज्जत, मेरा सम्मान है पिता,
मेरी ताकत, मेरी पूंजी, मेरा अहसास है पिता।
सभी घरों की शान और रौनक है पिता,
मुझको हिम्मत देने वाले मेरे अभिमान हैं पिता।
अनुभवों की सीढ़ी पर, उंचे बहुत बैठे पिता,
दिन भर झोला टांगे, भोजन को दिखते पिता।
पैरों के छाले भी अनदेखा करते हैं पिता,
गर देखें सत्य की नजरों से तो,
भविष्य को पहचानने वाले हैं पिता,
और नन्हों की जीत के लिए सबकुछ हारे हैं पिता।
-हर्ष वर्मा, हरमन माइनर स्कूल भीमताल