पिता ही जीवन है, संबल है, शक्ति है।
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।
पिता उंगली पकड़े बच्चे का सहारा है।
पिता कभी खट्टा, मीठा व खारा है।
पिता पालन है पोषण है, परिवार का अनुशासन है।
पिता धौंस से चलने वाला प्रेम का प्रशासन है।
पिता छोटे से परिंदे का एक बड़ा आसमान है।
पिता है तो बच्चों को इंतजार है।
पिता से ही मां की बिंदी व सुहाग हैै।
पिता परमात्मा की जगत के प्रति आशक्ति है।
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है।
पिता सुरक्षा है, सिर पर हाथ है।
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है।
क्योंकि मां-बाप की कमी कोई बांट नहीं सकता।
-नित्या अग्रवाल, एजुकेशन प्लेनेट स्कूल, खेतीखान जिला चंपावत