June 06, 2020 0Comment

पिता ने दुनिया से लड़ना सिखाया

पिताजी ने चलाना सिखाया,
खेलना सिखाया, पढ़ना सिखाया,
और सबसे अच्छा उन्होंने दुनिया से लड़ना सिखाया।

डांटने के बाद उन्होंने हंसना सिखाया,
वक्त बीत जाने पर मैं सबकुछ भूल गई,
जो त्याग पिताजी ने किया वह भी मैं भूल गई।
इसलिए मैंने सोचा कि कभी न कभी पिताजी का मान बढ़ाउंगी।
उनकी छाती गर्व से उंचा मैं कराउंगी।

जैसे उन्होंने मेरा बचपन में ख्याल रखा,
वैसे ही मैं उनका, उनके बुढ़ापे में रखूंगी।
उनको किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी,
उनका हाथ पकड़कर उन्हें घुमाउंगी।

-नम्रता दफौटी, सरस्वती एकेडमी, हल्द्वानी

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