पिता तो धरती पर स्वयं भगवान का रूप है,
मेरे लिए तो यही जिंदगी का स्वरूप है।
उंगली पकड़कर जिसने चलना सिखाया,
कंधे पर जिसने बैठाया।
याद आ जाती हैं वो कल्पनाएं,
जिन्हें पिता ने सच बनाया।
पिता तो धरती पर स्वयं भगवान का रूप है,
मेरे लिए तो यही जिंदगी का स्वरूप है।
कभी घोड़ा, कभी हाथी बन
जिसने हमें हंसाया।
वो कोई और नहीं,
बस एक पिता कर पाया।
पिता ने की हर ख्वाहिश पूरी,
चाहे खुद पसीना कितना बहाया।
पिता के रूप में सच्चा दोस्त है पापा,
जिसने हरदम साथ निभाया।
लड़खड़ाए जब भी कदम मेरे,
पिता ने ही सही रास्ता दिखाया।
पिता वो शब्द है जिसे सुनकर,
उठती है मन में नई तरंगें।
लहरा जाते हैं मन में,
उम्मीद और प्रेम के तिरंगे।
मां की डांट से जो हर समय बचाते हैं,
वो कोई और नहीं
मेरे सुपर हीरो कहलाते हैं।
-अंशुल अग्रवाल, होली ट्रिनिटी सेकेंडरी स्कूल लालकुआं