मां घर का गौरव तो,
पिता घर का अस्तित्व होते हैं।
मां के पास अश्रुधार तो,
पिता के पास संयम होता है।
दोनों समय का भोजन मां बनाती है
तो जीवन भर भोजन की व्यवस्था करने वाले पिता होते हैं।
कभी चोट लगे तो मुंह से ‘ओह मां’ निकलता है
रास्ता पार करते वक्त कोई वाहन पास आकर ब्रेक लगाए तो
‘बाप रे’ ही निकलता है।
क्यूंकि छोटे-छोटे संकट के लिए मां याद आती है,
मगर बड़े संकट के वक्त पिता याद आते हैं।
पिता एक वट वृक्ष है जिसकी
शीतल छांव में,
संपर्ण परिवार सुख से रहता है।
-हिमांशी देवली, श्री साईं सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी