पिता, ये शब्द बहुत है छोटा
पर उपकार है इनके बड़े
लड़का हो या लड़की, सभी के ये प्रिय हैं होते
सभी जरूरतों को करते हैं पूरा
कभी न छोड़ते साथ अधूरा
पिता है तो सारे खिलौने अपने हैं
पिता न हो तो ये सब सपने हैं।
जिससे घर है चलता वो राशन है मेरे पिता
मेरा साहस, मेरी हिम्मत है मेरे पिता
कभी कंधे पर बैठाकर, कभी गोदी में खिलाकर
रखते सारी खुशियां परिवार के लिए सहेजकर
सदा मां की डांट से बचाते
सदा लाड़ दुलार हैं करते
बिन पानी के जैसे तालाब तालाब नहीं
बिन पिता के जीवन, जीवन नहीं
-अंजलि कनवाल, मास्टर्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी