पिता का मान सबसे बड़ा सम्मान,
पिता धर्म सबसे बड़ा है कर्म।
सलाम है उस पिता को मेरा,
जिसने मुझे इस योग्य बनाया,
पढ़ाया, लिखाया, मेरा मान बढ़ाया।
वक्त बुरा नहीं था वो,
जब किस्मत ने तेरा साथ न दिया,
सोचकर रो पड़ता हूं मैं,
जबसे उस दिन को है याद किया।
जिंदगी में आपने खुश रहना सिखाया,
हमारा पेट भरकर अपना पेट दुखाया।
भूला नहीं उस दिन को मैं,
जब समाज ने तेरा मजाक उड़ाया,
कहते थे कि जिंदगी में तूने
पैसा कितना है कमाया।
लेकिन मेरे पिता ने मुझे हमेशा से ये,
बात सिखलाई कि करना तुम किसी की न बुराई।
आजकल का समाज पता नहीं,
क्यों इतना गिर गया,
सोचते हैं लोग कि
पैसा नहीं तो, सब कुछ है गुजर गया।
अरे पूछो उन गरीब बेसहारा पिता से,
जिसने अपना जीवन बच्चों की पढ़ाई में लगा दिया।
पैसा नहीं था फिर भी
अपने बच्चों को पढ़ा लिया।
अब क्या अंतर रह गया,
उस अमीरी में या गरीबी में,
पिता होता है एक समान,
चाहे अमीरी में या फकीरी में।
पापा ने मेरा साथ दिया,
हर मुश्किल को मार दिया।
पापा ने मुझे हमेशा,
ये बात सिखलाई,
कि बेटा बनकर रहूंगा हमेशा,
तेरी ही परछाईं।
उस दिन से मुझे पता चला,
महत्व होता क्यों है पिता का।
तब जाके ये समझ आई
कि क्यों है मेरे पापा मेरी परछाईं।
-मयंक दनाई, हैड़ीयागाव