उसी के अंश है है उसी से सच्चा नाता
उन से संबंध ऐसा प्रेम के अनुबन्ध जैसा
उसकी परवरिस में अपनी जीवन सांसे पाता
उनसे है ऐसा नाता जैसे दीपक का बाती से नाता
पिता कहे या कहे विधाता
हमें उंगली पकड़ बस वहीं चलाता
अपनी गोदी में हमें घुमाता
हमारे सारे सपने सजाते
खुद से पहले हमें खिलाते
हमारे सुख में अपने सारे दुःख भूल जाते
पिता के बिन हमारा जीवन इस जगत में केसे आता
पिता कहे या कहे विधाता
पिता की उंगली पकड़ ली
तो शक्ति मैने जकड़ ली
मुफलिसी में है घर को चलाया
खुद टूटकर घर को है बनाया
सुख दुःख में गले से लगाया
घबराना मत साथ अपना बताता
पिता कहे या कहे विधाता
समाज में पिता पहचान दिलाते
जिंदगी का हर पल फूलों से सजाते
पीठ को करके बिछोना
पिता बनते हमारे खिलाना
शैतानी को नादानी माना
नूर हने आखों का माना
स्नेह से जीवन सजाता
पिता कहे या कहे विधाता
आसमा कांधे से छुवाता
पाठ जीवन के पढाता
पिता बिन मेरा जीवन इस जगत में केसे आता
सपनो की इस दुनिया में लाता
रिस्तो के सब बेड़े पार लगाता
पिता कहे या कहे विधाता
समस्या के परामर्श जैसे
पिता हैं आदर्श मेरे
पिता हैं त्यौहार भी है
मां के सब श्रृंगार भी है
जिंदगी में हर जगह हैं
पिता ऋतुओं की तरह है
जिंदगानी है सजाता
पिता कहे या कहे
विधाता
पिता के ही अंश हैं हम
पिता के ही वंश है हम
जिंदगी का जो मजा है
बिन पिता वो सब सजा है
पिता हैं तो फिक्र कैसी
जिंदगी उपहार जैसी
पिता हैं मस्तक का साया
हौसला हमारा बड़ाता
पिता कहे या कहे विधाता
दिन अभावों में बिताए
हमको सारे साधन जुटाए
सही गलत का भेद बताया
पिता दुआवो का खजाना
अपना निवाला हमे खिलाया
गिन गिन के सीढ़ी चढ़ाता
पिता कहे या कहे विधाता
सुख ,संकट के समय में
पिता हैं हमारे हृदय में
चन्द्रमा दिनमान मानो
पिता को भगवान मानो
क्या कहूं वरदान जैसे
पिता हैं भगवान जैसे
पिता का करे ऊंचा नाम
पिता के चरणो में कोटि कोटि प्रणाम
पिता हैं प्राणदाता
पिता कहे या कहे विधाता
-विनय शर्मा, कल्याणपुर पहाड़पानी नैनीताल