पापा हर फर्ज निभाते हैं,
जीवन भर कर्ज चुकाते हैं।
बच्चे की एक खुशी के लिए,
अपने सुख भूल ही जाते हैं।
फिर क्यों ऐसे पापा के लिए
बच्चे कुछ नहीं कर पाते हैं।
ऐसे सच्चे पापा को क्यों,
पापा कहने से भी सकुचाते हैं,
पापा का आशीष बनाता है,
बच्चे का जीवन सुखदाई,
पर बच्चे भूल ही जाते हैं,
यह कैसी आंधी है आई,
जिससे सबकुछ पाया है।
जिसने सबकुछ सिखलाया,
कोटि-कोटि नमन ऐसे पापा को,
जिसने हर पल साथ निभाया है।
-प्रियांशी जोशी, मास्टर्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी