June 09, 2020 1Comment

परछाई बनकर चलते हैं

परछाई बनकर चलते हैं,
पूज्य 🙏🏼🙏🏼पिताजी है मेरे वो।
मुझको लाए जो इस जग में ,
नाम धराया धूम-धाम से,
अंगुली थामी ,चलना सिखाया,
सँभल -सँभल कर बढना सिखाया।
आँसू जब कभी आ जाते …………
वो गोद में ले के मुझे घुमाते……….
कभी काँधे पर मुझे बैठाते,
दो काजू ..दे ख़ुश कर देते।
लंबी -चौड़ी क़द- काठी थी,
काला सूट पहन कर चलते ,
ग़ौर वर्ण और चौड़ा माथा ,
मदद को सबकी तत्पर रहते ।
छठे वर्ष में खेल रही थी,
दुनिया की सुधि नहिं कोई थी ,
ये …….क्या ……….?
माँ का चेहरा बुझा – बुझा -सा !
पसरा घर में सन्नाटा – सा। !!
सारे घर को छोड़ -छाड़ कर,
राह चले अनजान नगर वो ,
जग से दूर बहुत अब वो थे !
प…र जीवन में मेरे नित वो
साथ रहे हैं परछाईं -से …
दुख का जब झोंका आता है ,
तुरत उबार मुझे लेते हैं ।
राहें कई जब घेर लें मुझको,
सही डगर दिखला देते हैं ।
पूज पिताजी राह दिखाना,
बाधाएँ सब मेरी हरना,
सपने आँखों में पाले जो,
सच करके मैं दिखलाऊँगी ।
तन ये जब तक रहे पिताजी ,
परछाईं बन संग ही रहना ,
सुख में मेरे ख़ुश हो जाना,
दुख आएँ तो उन्हें मिटाना।
शीश झुकाकर नमन करूँ मैं,
परछाईं बन संग ही रहना !
परछाईं बन संग ही रहना !!

—डॉ. भगवती पनेरू
प्रवक्ता (हिंदी )
आर्यमान विक्रम बिडला स्कूल,
हल्द्वानी
नैनीताल

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