नारी तू नारी से ईर्ष्या करती आयी है।
तभी तू जाग कर भी नही उठ पायी है।
सास बहू ननद भाभी की ,
कहानी कहती आयी हैं
तू पुरूष से दबती, स्त्री को दबाती आयी है।
पुत्र की चाह में पुत्री को दिया
गर्भ में मार
क्या बेटा व बेटी में।
तू अंतर कर पाई हैं।
नारी तू नारी से ईर्ष्या………………….. ..
कभी दहेज उत्पीड़न
कभी बंश का चलन ,
रूढ़ियों में घिरति आयी है।
सोचा कभी तूने की तू।
बहू को बेटी का प्यार दे पायी है।
नारी तू नारी से ईर्ष्या………………….. ..
बेटे ने कुछ भी किया,
हिसाब तूने नही लिया
पर बेटी से तू पल पल का
हिसाब लेती आयी है।
तू तो बेटा व बेटी में भी
अंतर करती आयी है
नारी तू नारी से ईर्ष्या………………..
खुद भी कितना सहा तूने,
बोझ बहूत उठाया तूने,
तभी धरती कहलायी है ।
फिर अपने ही अंश से,
तू क्यो जलती आयी है ।
नारी तू नारी से ईर्ष्या…………………
-विद्या महतोलिया। हल्द्वानी
September 25, 2017
जी आपने कविता बहुत अच्छी लिखी है।।
लेकिन सिर्फ महिला का एक पक्ष देख उसे कुसूरवार ठहराना ठीक नहीं।
आपकी इस कविता में पितृसत्तात्मक सोच झलक रही है।।
October 8, 2017
namaskar