October 17, 2017 4Comments

नयन, नयन की भाषा समझें, ऐसी सुनो ना मीत बनो

नयन, नयन की भाषा समझें, ऐसी सुनो ना मीत बनों,
जितने गीत लिखूं मैं वनिता, तुम उनका संगीत बनो।।

चाँद सा मुखड़ा देख तुम्हारा कोई भी बेसुध हो जाऐ,
तुम्हारा यौवन देख रती भी पानी-पानी हो जाऐ,
अधर तुम्हारे जैसे कोमल गुलाब की पखुंड़ियां हैं,
जब मुस्काती मन ये कहता स्वर्ग से आयी गुड़िया हैं,
सावन में जो तीज की होती, ऐसी सुनो ना रीत बनो,
जितने गीत लिखूं मैं वनिता, तुम उनका संगीत बनो।

मेरे इस व्याकुल मन को आराम तुम्हीं से मिलता हैं,
मेरे प्रेम  के तीर्थ का तो धाम तुम्हीं में मिलता हैं,
तुम मेरे संग प्रिये सुनो, कुछ ऐसे  रहती हो,
जैसे गंगा संग लहरें मदमस्त होकर बहती हो,
जैसी सर्प चन्दन से हैं, ऐसी सुनो ना प्रीत बनों,
जितने गीत लिखूं मैं वनिता, तुम उनका संगीत बनो।

तुम काशी की सुबह हो प्यारी, नैनीताल की मीठीं शाम,
तुम गिरिजाघर, मन्दिर लगती, कभी हो लगती चारों धाम,
जबसे हो तुम साथ हमारें, सब बदला-बदला रहता हैं,
हमसा ना धनवान कोई हैं , मन ये हमसे कहता हैं,
हार की सुधि भी खो बैठूँ मैं, ऐसी सुनो ना जीत बनों,
जितने गीत लिखूं मैं वनिता तुम उनका संगीत बनो।

नयन, नयन की भाषा समझें, ऐसी सुनो ना मीत बनों,
जितने गीत लिखूं मैं वनिता तुम उनका संगीत बनो।।

-शेखर पाखी, रूद्रपुर, जिला-उधमसिंह नगर, उत्तराखंड

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gtripathi

4 comments

  1. अच्छा लिखा है..और बेहतर हो सकता है..

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    1. धन्यवाद आदरणीया,आपके वक्तव्य का ध्यान रखूंगा

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  2. वाह. बहुत सुन्दर

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  3. बहुत सुंदर

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