अनुशासन का पाठ पढ़ाता,
धुल-धुल होती काया।
प्रपंचों के इस दलदल में,
हमने ओर न छोर पाया।
सरस्वती, लक्ष्मी का गठजोड़,
हो रहा सब पर तारी।
एक दूजे की की पूरक बनकर
सब पर भारी
आत तार्या से कांपती धरती
शेषनाग का सिंहासन डोला।
भुवन मोहिनी मुस्कान लिए,
लक्ष्मी ने लिया हिचकोला।
रीझ गए माया पर ईश्वर,
झटपट अपना पट खोला।
कथनी और करनी में देखो,
जमीं आसमां का फर्क है,
अपने दहेज विरोधी परम मित्र ने
दहेज की गाड़ी पर लिख डाला
दुल्हन ही दहेज है।
-गोकुल कोठारी, नोएडा
January 28, 2018
wah
January 29, 2018
very nice
January 29, 2018
अति सुंदर
January 29, 2018
Bahut badiya
January 29, 2018
Very nice poem
January 31, 2018
Wha wha gokuk da one more
January 31, 2018
Nice poem
January 31, 2018
Very very nice poem
January 31, 2018
Very nice good going best of luck
January 31, 2018
Wah Mama g Bahut achi
January 31, 2018
Great message through this poem.. Great going Mama 🙂
February 1, 2018
Wow.. Its nice.. Sir…
Ji..