रंगों के बादल बरसे,
सखियां पानी-पानी।
चपल श्याम हाथ न आवे,
भीगे राधा रानी।
सोच रही अब राधा रानी,
भर-भर कर सिसकारी।
जो श्याम को भिगो सके,
लाउं कहां से पिचकारी।
गोपी संग झूमे कन्हैया,
करते हैं बर जोरी,
आंख तरेरे राधा रानी,
चुपके चोरी-चोरी।
रंग रसिया यह आंखें चंचल,
माने कहां निगोरी,
यमुना तट पर खड़ी गोपियां
करती हंसी चिरौरी,
अब किसकी चुनरी श्याम चुरावे,
अब किसकी बारी,
मैं बलिहारी जाउं देखन,
वृंदावन की होरी,
फाग का रंग बनंू
खेलूं कान्हा संग होरी
खेलूं कान्हा संग होरी
चंद्र हास चंचल चितवन का, चमके चांद चकोर
माखन दधि की मटकी फोड़े, जब मुरली मनोहर
माखनचोर।
-गोकुल कोठारी, गाजियाबाद
February 12, 2018
6Comments
खेलूं कान्हा संग होली
Tags: gaziabad, gokul kothari
February 13, 2018
Ati sundar
February 15, 2018
Very nice sir
February 15, 2018
Sir very good
February 15, 2018
bahut achha
February 16, 2018
Good
February 18, 2018
Bahut khub…..