कुबेर तो नहीं,
कुबेर सा खजाना हैं पापा
आसमान तो नहीं
आसमान सी छत हैं पापा।
खुदा तो नहीं,
फिर भी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं पापा।
गौतम बु़द्ध तो नहीं,
फिर भी हर गलती की माफी देते हैं पापा।
महर्षि दधिचि तो नहीं,
फिर भी हमारे लिए अपने सुख त्यागते हैं पापा।
जज तो नहीं,
फिर भी फैसला नहीं, सुलह सुनाते हैं पापा।
जेलर से हैं,
फिर भी सजा नहीं, प्यार से समझाते हैं पापा।
-प्रियांशी देवली, बीएलएम एकेडमी हल्द्वानी