कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता,
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता।
अगर जन्म दिया है मां ने,
जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता।
कभी कंधे पे बिठाकर मेला दिखाता है पिता,
कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता,
मां अगर पैरों पे चलना सिखाती है,
तो पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता।
कभी रोटी तो कभी पानी है पिता,
कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता।
मां अगर है मासूम सी लोरी,
तो कभी ना भूल पाउंगी वो कहानी है पिता।
कभी हंसी तो कभी अनुशासन है पिता,
कभी मौन तो कभी भाषण है पिता।
मां अगर घर में रसोई है,
तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता।
-लक्ष्मी बिष्ट, हल्द्वानी
August 25, 2021
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