December 26, 2017 0Comment

कपूत


बैकग्राउंड से आवाज आती है।
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बिजली कड़क रही थी, घनघोर बारिश हो रही थी। चारों ओर तूफान आया था। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद से अधिकतर कहानी के नायकों का जन्म ऐसे ही माहौल में होने लगा है। लेकिन हमारी कहानी के नायक चमन का जन्म साधारण तरीके से हुआ। नार्मल डिलीवरी। बस लोगों ने उस दिन इतना कहा कि चमन के पैदा होने से पहले करीब 100 बैल मरे थे। अब बैलों के मरने और एक आदमी के पैदा होने में क्या संबंध है पता नहीं। हो सकता है कहानी पढ़ने के बाद अंदाजा लगाया जा सके।
उत्तराखंड में एक गांव पड़ता है दुलारी। यहीं एक किसान करमकल्ले के घर में चमन का जन्म हुआ। आप सोच रहे होंगे कि बाप का नाम करमकल्ले इतना घटिया और बेटे का नाम चमन इतना पढ़ा लिखा। इसके पीछे नामकरण करने वाले पंडितों का हाथ है। गांव में जो दक्षिणा कम देता था उसके बेटे का नाम नपोरा, लल्लू, करमकल्ले जैसे नाम ग्रह दिशाओं को समझाते हुए रखे जाते थे। चमन के नामकरण के वक्त करमकल्ले के पास रूपये टूटे नहीं होने की वजह से पूरे बीस रूपये चले गए। उधर पंडित बीस रूपये पाकर खुश हो गए तो उसने चमन जैसा अच्छा नाम रख दिया। वरना गांव में अधिकतर नाम उपरोक्त उदाहरणों वाले ही थे। हालांकि करमकल्ले चमन को कई बार कपूत कहकर बुलाता था। जिससे गांव वाले भी उसे कपूत कहने लगे।

चमन ने गांव के स्कूल से जैसे-तैसे पांचवीं और फिर शहर में काॅलेज में एडमीशन ले लिया। शहर के मास्साब बहुत खतरनाक थे। सारे टीचर रोजाना स्कूल में ही रहते थे। एक दिन न आओ तो डांट पिटाई खाओ। मेहनत से (चमन के अनुसार) पढ़ने के बावजूद उसे फेल कर दिया जाता। बार-बार फेल होने के पीछे उसे शहर के टीचरों का दोष नजर आता। चमन के अनुसार गांव के मास्साब खाली काॅपी भी छोड़ आओ तो पास कर देते थे। यहां दो-दो काॅपी भरने के बाद भी नंबर जीरो। कई बार उसने काॅपी के अंदर पास करने की टीचरों से प्रार्थना भी लिखी, लेकिन उन्हें तरस नहीं आया। क्लास में भी लड़के उसे नकल नहीं कराते, जिससे वो पास हो सके। अंत में जब उसने किसी पर भरोसा न करके घर से महत्वपूर्ण सवालों के जबाव फर्रों ( कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों) में लिखकर आस्तीनों में छिपाकर ले जाना शुरू किया तब कहीं जाकर वह मैट्रिक थर्ड डीवीजन से पास हुआ। वरना हर बार अनपढ़ मां-बाप पूछते

पिता-बेटा पिछली साल भी तू दसवीं में था। इस बार भी।

(पर्दे के पीछे से)

चमन एक ही जवाब देता
-बापू तू बहुत भोला। तू गांव के दूसरे लौंडों से मेरी शरीकत मत किया कर। खरगोश और कछुए की कहानी सुनी है तूने। जो जल्दी-जल्दी कक्षाएं पास करते चले जाते हैं। वो आगे जाकर लड़खड़ाकर गिर जाते हैं। मैं अपनी हर क्लास में नींव मजबूत करता हुआ चल रहा हूं।
पिता-अबे कपूत अब तू बहुत पढ़ लिया है। काम धंधे पर ध्यान दे। कल से खेत पर मेरे साथ चलना। वैसे भी एक बैल बीमार हो गया है और खेत की जुताई करनी है। एक बैल की जगह तू लग जाना तो कल खेत जोत लेंगे। देर करेंगे तो फसल पर मौसम की मार पड़ जाएगी। तेरे दोनों बच्चे बड़े हो रहे हैं। कुछ इसका ख्याल रख। इनको पालना है कि नहीं। या इन्हें अपनी तरह निठल्ला बनाएगा।
चमन- बस बापू बस। मुझे पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना है। ये खेतीबाड़ी छोटे लोगों का काम है। हर बार मौसम की चिंता। कभी बारिश नहीं हुई तो नुकसान, कभी बारिश हो गई तो नुकसान। कभी बैल बीमार, कभी फसल में कीड़े लग गए। मुझसे न हो पाएगा ये सब। मैंने फैसला कर लिया है कि अब मैं सरकारी नौकरी करूंगा।
सरकारी नौकरी के अपने मजे हैं। देखा नहीं कि हमारे गांव के मास्साब राधे श्याम कैसे चैन की बंशी बजाते हैं। जब मूड होता है तब स्कूल आते हैं, जब मूड होता है तब पढ़ाते हैं। जिसके घर से बढ़िया वाला देसी घी आता है उसको फस्र्ट क्लास से पास कर देते हैं। सरकारी नौकरी मतलब राजा की जिंदगी। अब इतनी पढ़ाई तुम्हारे खेतों में मजदूरी करने के लिए थोड़े ही न की है। अब मैं घर तभी लौटूंगा जब सरकारी नौकरी में भर्ती हो जाउंगा। गुड बाॅय।

पर्दे के पीछे से
दो सप्ताह तक चक्कर काटने के बाद चमन फिर घर वापस लौट आया। घर में घुसते ही सबसे पहले उसका सामना अपनी पत्नी से हुआ। दोनों बच्चे घर में उठापटक मचा रहे थे। बिखरे पड़े घर में झुझलाई पत्नी रेखा को जब पता चला कि चमन को कोई नौकरी नहीं मिली है तो उसने तानों की बौछार कर दी।
रेखा-निठल्ले, आलसी, कामचोर, मुत की रोटी तोड़ने वाले।
(इससे ज्यादा तानों के बारे में हम इसलिए यहां जानकारी नहीं दे रहे हैं क्योंकि सभी पाठक अपनी पत्नियों के ताने घर में सुन-सुनकर पक चुके हैं।)
चमन -अरे शांत हो जा। अभी मेरी थोड़ी पढ़ाई बची है। मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ना है। तब उसको सरकार बाबू की नौकरी देगी। अभी मुझे विकास भवन में चपरासी की नौकरी के लिए बहुत कहा जा रहा है। कलक्टर साहब दो दिन तक मुझे मनाते रहे लेकिन मुझे चपरासी नहीं बाबू बनना है। मां-बाप का पैसा यूंही बर्बाद करने के लिए थोड़ी ही पढ़ाई की है। इसलिए मैंने मना कर दिया। मैं उनसे कहकर आया हूं कि चार साल बाद मैं आउंगा और यहां बाबू की नौकरी करूंगा। कलक्टर साहब कहते रहे प्लीज हमारे यहां नौकरी कर लीजिए। लेकिन मैं उन्हें इंतजार करने को कह आया हूं।
घर में घुसते ही तूने अपनी खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया। ये नहीं की उसे कुछ खाने के लिए दे।
रेखा-चलो ठीक है। लाती हूं खाना ये लो बच्चों को संभालो।
चमन ने झूठ बोलकर सबको समझा तो लिया लेकिन असल बात वो खुद जानता था। हुआ यूं कि घर से जोश में निकलने के बाद वह कलेक्ट्रेट आफिस में गया। जहां उसे अंदर नहीं घुसने दिया गया। गार्डों ने उसकी एक न सुनी और धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। दो तीन दिन जब ऐसा हुआ तो उसने अपने मित्र राजेंद्र लपरझन्ने के घर जाकर शरण और सलाह ली। लपरझन्ने बचपन से चमन का दोस्त था।

लपरझन्ने को बमुश्किल हाईस्कूल पास कर पाने के कारण उसके पिता ने अपनी पुश्तैनी पर बैठा दिया था। जहां दिनभर वह आटे में पूर्ण लिप्त होकर काम करता और शाम को दो पैग लगा लेता। पैग लगाने के बाद लपरझन्ने ज्ञान का भंडार हो जाता था। लपरझन्ने के पास पहुंचकर
चमन-यार मैं एक कवि बनना चाहता हूं। सुना है कवियों को सिर्फ एक कविता सुनाने के हजारों रूपये मिलते हैं। उपर से सम्मान अलग।
लपरझन्ने- कविता किसी सुंदर स्त्री के यौवन की व्याख्या है, अपने देश के प्रति जोश है, सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार है।
लपरझन्ने की बाउंसर बातें चमन के सिर के ऊपर से गुजरने लगीं।
चमन-वो सब छोड़, ये बता, कविता कैसे लिखूं। जिससे जल्द से जल्द मैं फेमस हो सकूं और घरवालों का मुंह बंद कर सकूं। सवाल कठिन था लेकिन लपरझन्ने ने एक पैग और चढ़ाकर ज्ञान का भंडार बढ़ाया- तुकबंदी में लिख, कविता बन गई।

उदाहरण देखो-
घर की रोटी मोटी नहीं होती।
हर किसी की बीवी छोटी नहीं होती।
सड़क पर बहता रहता दिनभर पानी।
क्योंकि सरकारी नल में टोटी नहीं होती।
लपरझन्ने का काव्य ज्ञान के भंडार को देख चमन बाग-बाग हो गया। वह लपरझन्ने के ज्ञान को कागज में उतारने के लिए घर चल पड़ा। रातभर कोशिश की। रोटी, छोटी, मोटी, टोटी हो चुका था। इसलिए समोसा का समान्तर शब्द ढूंढने के लिए पूरा भेजा खर्च कर डाला। पन्ने पर पन्ने फाड़ता रहा रात भर। एक लाइन उससे नहीं लिख पाई। सुबह उठकर सबसे पहले उसने लपरझन्ने के घर तक दौड़ लगाई।
लपरझन्ने -देख कविताएं कई रसों में लिखी जाती है। तू श्रृंगार रस से शुरूआत कर। अपनी पहली प्रेमिका के बारे में सोच और कुछ लिख।
चमन-अरे कहां यार। प्यार के बारे में कुछ सोचने से पहले ही मेरे बाप ने मुझे घोड़ी पर चढ़ा दिया।
चमन के ना नुकुर के बाद लपरझन्ने- प्रेमिका को छोड़ो। जिस तरह तुमने सुहागरात पर तुमने अपने अंदर भाभी के लिए प्रेम के समंदर में ज्वार भाटा उत्पन्न किया था। एक बार फिर उस समंदर में आंधियां चलाने की जरूरत है। मोटी बुद्धि चमन को कुछ नहीं समझ आया-कैसे करूं ये सब।
लपरझन्ने -तू घर जा। शाम को भाभी से प्रेम भरी बातें कर। बदले में वो भी तुझसे प्रेम भरी बात करेगी और तू उस माहौल में एक प्रेम रस की कविता लिख डाल।

चमन के कुछ बात समझ में आई। वह शाम को घर पहुंचा।
चमन ने मौका देख चूल्हा फूंक रही अपनी बीवी से कहा-अरी ओ रेखा, जब से मैंने तुझे देखा।
अचानक मुंह से निकली इस लाइन से चमन को लगा-वाह लगता है कविता बनना शुरू हो गई है। लपरझन्ने का फार्मूला काम कर रहा है। उसने फौरन लाइन को कापी में नोट कर लिया। उधर बीवी काम में व्यस्त थी। चूल्हे से धुआं निकलने के कारण उसे बार-बार खांसी आ रही थी। चमन को लगा बीवी उसकी बात सुन नहीं पाई है। इसलिए उसने दोबारा आवाज लगाई- रेखा जब से तुझे देखा।
गुस्से में आई बीवी जोर से चिल्लाई-क्या है! चैन से बैठो। मैं खूब समझती हूं तुम्हारे शाम के वक्त ये सिगनल। इन्हीं सिगनलों की वजह से कल्लू और मुल्लू हुए हैं। जिनकी जिम्मेदारी तुमसे संभलती नहीं। मुझे ही दिनभर घरों में दिनभर बर्तन मांजकर गुजारा करना पड़ रहा है। तुम्हारा बाप भी सिर्फ तुम्हे ही पैसे देता है। ये नहीं कि कुछ पोतों का भी ख्याल रखें। तुम्हारी मां तो बस शाम को गांव की दूसरी औरतों के साथ पंचायत करने बैठ जाती है। तुम्हारे अंदर शाम को आग जलने लगती है। ‘बाप मरे अंधेरे में, बेटा पावर हाउस।’ ज्यादा आग लग रही है तो तुम्हे चूल्हे में झोंक दूंगी।
बीवी का आक्रामक रूख देकर चमन चुपचाप खटिया पर बैठ गया और इन हालातों में भी कविता लिखने की कोशिश करने लगा।

मैं अमिताभ हूं, तू है मेरी रेखा।
मैंने कभी नहीं किया तुझे अनदेखा।
जब तू चिल्लाती है दिल खोलकर
बिगड़ जाता है दिमाग का लेखा-जोखा।
वाह आखिरकार बन गई एक कविता। जय हो लपरझन्ने। यह सोचकर चमन खुशी से उछल पड़ा। कुछ इसी तरह की और कविता बनाने की वह कोशिश करने लगा। पर दिमाग खाली हो गया था। अगले दिन उसने दिमाग को निचोड़-निचोड़कर फिर एक कविता लिखी। कविता तो लिख ली पर कवि सम्मेलन में कौन और कैसे बुलाया जाएगा। ये सोचकर वो परेशान हो गया। आइडिया के लिए चमन ने लपरझन्ने का रास्ता पकड़ा।
आटा चक्की से आटे में लथपथ लपरझन्ने बाहर निकलता है। चमन की दुख भरी कहानी सुनने के बाद लपरझन्ने ने अपने चेहरे पर लगे आटे को झाड़ा। दिमाग पर जोर डाला। सिर खुजलाया। दो चार बाल नोचे। अंत में एक आइडिया निकाला।
लपरझन्ने-कवियों में पीठ खुजलाने की परंपरा होती है। तुम उन्हें बुलाओगे तो वो तुम्हें बुलाएंगे। एक काम करो तुम। अपनी लिखी हुई कविताओं की एक किताब छपवा लो। किताब छपना किसी पर भी उसके साहित्यकार होने की मोहर होती है। किताब नहीं तो कवि नहीं, साहित्यकार नहीं। साथ ही किताब के विमोचन के बहाने तुम अन्य कवियों का बुला लेना। बदले में वो भी तुम्हें बुला लेंगे।

चमन-ये किताब छपवाने और विमाचन कराने के लिए पैसे कहां से आएंगे।
लपरझन्ने-तुम चिंता मत करो। इस समय उत्तराखंड में आपदा आई हुई है। तुम गांव वालों से आपदा के नाम पर चंदा ले लेना। इस चंदे से हम अपनी किताब छपवा लेंगे। कौन सा गांव वाले वहां चेक करने जाने वाले हैं कि उनका पैसा आपदा पीड़ितों पर खर्च हुआ है या कहीं और।
चमन ने घर जाकर सारी कविताएं पलटीं।
दिल झंपिंग झपांग झंपक झंपक
बच्चे पढ़ें नंदन, चंपक चंपक
घर में होती चकचक चकचक
कितनी सारी धमचक धमचक।
गिली गिली गू, गिली गिली गू।

हां ये थोड़ी ठीक रहेगी। लेकिन इसकी धुन क्रिकेट का मैच देखते वक्त सुनी थी। कहीं लोग पहचान तो नहीं जाएंगे। अब इससे बेहतरीन रचना मुझे समझ नहीं आती। बाकी चीजों को लपरझन्ने संभाल लेगा।
अगले दिन उसने बड़ा सा टीन का डिब्बा बनाया। जिसमें लिखा-तुम आपदा पीड़ितों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा। सबसे पहले गांव में चमन के चाचा टकरा गए। चमन ने भी सोचा-सबसे पहले चाचा को ही चूना लगाता हूं।
चमन-और चाचा कैसे हो ?
चाचा-बस कपूत बचुवा, सब बढ़िया। तुम्हारी सरकारी नौकरी लगी कि ना ही।
चमन-नौकरी का क्या है, कभी भी लग जाएगी। कलक्टर साहब कई बार बुला चुके हैं। मैंने ही उन्हें मेरी पढ़ाई पूरी होने तक इंतजार करने को कहा है। एक साल की बात और है। वैसे भी मेरे बराबर पढ़े लिखे लोग कम ही हैं।
चाचा-हां तुमने बताया था। और सुबह-सुबह ये डिब्बा लेकर कहां जा रहे हो?

चमन ने अपने घड़ियाली आंसू निकालते हुए रोना शुरू किया-चाचा तुमने सुना नहीं। पिथौरागढ़ के आगे ला-झेकला गांव में कितनी आपदा आई है। सप्ताह भर पहले रात में बादल फट गया। आधे से ज्यादा मारे गए। जो बचे हैं वो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सरकारी मदद तो तुम जानते हो कैसी मिलती है। मैंने बीड़ी उठाया है कि उनकी मदद करके दम लूंगा। कल को हमारे साथ भी अनहोनी हो सकती है। कौन आगे आएगा।
चमन की बात सुनकर चाचा की भी आंखों में आंसू आ गए- बहुत बढ़िया बचुवा। बहुतै नेक काम कर रहे हो। ये कहकर उन्होंने दो रूपये जेब से निकालकर डिब्बे में डाल दिए।
उधर, चमन ने अंदर ही अंदर उन्हें गरियाया-इतना भावुक करने के बाद भी सिर्फ दो रूपये। चलो कोई बात नहीं। बोनी तो हुई।
चमन जैसे आगे बढ़ा-कुछ बच्चे खेलते मिल गए। चमन को देखते ही बच्चे जोर-जोर से चिल्लाने लगे- डिब्बे वाले अंकल जरा डिब्बा बजा दो। डिब्बे वाले अंकल जरा डिब्बा बजा दो।
चंदे की रकम देखकर लपरझन्ने बहुत खुश हुआ।
लपरझन्ने-अरे वाह। ऐसी आपदा रोज क्यूं नहीं आती। एक बार राज्य में आपदा आ जाए तो राज्य सरकार के वारे-न्यारे हो जाते हैं। केंद्र सरकार भी चाहकर पैसा देने से मना नहीं कर सकती। लोगों का क्या है वो अपना घर जैसे-तैसे बना लेंगे। जिंदगी है गुजारा चल जाएगा। अखबार के लिए फोटो खिंचाने वाले समाजसेवी चाय-बिस्कुट खिला देंगे। आपदा का मतलब राज्य सरकार के मालामाल होने का मौका।

‘दिल झपिंग झपांग झंपक झंपक’ के विमोचन के लिए सेट तैयार है। सभी लोग मंच पर बैठे अकड़ रहे हैं।
स्टेज पर वरिष्ठ कवि अबीरदास ‘अकेला’, स्कूल के प्रधानाचार्य करेला कुमार, शिक्षक झमेला बाबू और स्वयं चमन कुमार बैठे हुए हैं। मंच संचालन लपरझन्ने कर रहा है।
लपरझन्ने ने माइक संभालते हुए कहा-आज जैसा कि हम जानते हैं कि मेरे प्रिय दोस्त और देश के मूर्धन्य कवि चमन ‘चूषक’ ‘दुलारा’ जी की पहली किताब ‘दिल झंपिंग….छपाक… नहीं झपांग… चंपक… नहीं झंपक झंपक‘। (पीछे बैनर की तरफ देखकर नाम पढ़ते हुए) माफ कीजिएगा ‘दिल झंपिंग झपांग झंपक झंपक‘ के विमोचन समारोह के लिए इकट्ठे हुए हैं। (लपरझन्ने के अंदर ही अंदर चमन को गाली दी-कम से कम किताब का नाम तो सही रख लेता।) चमन को कविता से कितना प्रेम है वह इस कार्यक्रम से पता चलता है। मंच पर मौजूद हैं अकेला, करेला, झमेला और बीच में चमन फंसेला।
लपरझन्ने -अब मैं सभी से अनुरोध करूंगा कि चमन की किताब का विमोचन करें।

सभी अपनी जगह पर खड़े हुए और रंगीन कागज में लिपटी हुई किताब के मुंह नोचने की परंपरा पूरी की।
माइक पर लपरझन्ने ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा-अब मैं ज्यादा समय न लेते हुए वरिष्ठ कवि अबीरदास ‘अकेला’ जी को बुलाता हूं वो आए और चमन की किताब के बारे में कुछ बखान करें।
अबीरदास ने पान चबाते हुए माइक संभाला-आज साहित्य का बड़ा हनन हो रहा है। एक शब्द इधर से मिलाया, दूसरा शब्द उधर से मिलाया और बन गई कविता। चार कविताएं मिलाई तो बन गई किताब। साहित्य ना हुआ मिक्स वेज हो गई। हर कोई साहित्यकार बनने की होड़ में लगा हुआ है। अब चोरी के साहित्य का जमाना आ गया है। यहां से कट किया वहां पेस्ट कर दिया। किसी गाने की धुन सुनी गजल बना दी।
(अबीर दास जी का भाषण सुनकर चमन के पसीने छूटने लगे। कहीं वे उसका भेद न खोल दें।)
अबीरदास ने अपना भाषण आगे बढ़ाया- ऐसे में चमन जैसे कुछ युवा नए विषयों के साथ प्रवेश कर रहे हैं। चमन की किताब ‘दिल झंपिंग….छपाक… नहीं झपांग… चंपक… नहीं झंपक झंपक‘। पानी में डूब रहे बच्चे की अठखेलियों की सुंदर अभिव्यक्ति करती है। बच्चा पानी में डूबते हुए झपांग झपांग कर रहा है और अंतिम सांस के दौरान झंपक झंपक बोल रहा है। बड़ी ही मार्मिक कविता है।

(अबीरदास ने चमन की किताब का सिर्फ टाइटिल सुना था। दो पैग लगाने के बाद उन्हें यही समझ आया था। हालांकि ये झंपिंग झपांग झंपक झंपक शब्द उन्होंने पहली बार सुने थे। लेकिन उन्होंने इसका अर्थ इसलिए नहीं पूछा-कहीं चमन उसे छोटा साहित्यकार न मान ले। अधिकतर बड़े साहित्यकारों की यही निशानी है।) अबीरदास ने अपना भाषण पूरा करके बैठ गए।
लपरझन्ने-हमने सुना कि किस तरह से आईने के समान साहित्य पर धूल जमती जा रही है। ऐसे में चमन की किताब पोंछे की तरह काम कर रही है। अब मैं स्कूल के प्रधानाचार्य करेला कुमार को बुलाना चाहूंगा। जिन्होंने अपने स्कूल में यह कार्यक्रम कराने की अनुमति दी।
करेला कुमार माइक को ठीक करते हुए चालू हुए-चमन को मैं नाक चुआने की उम्र से जानता हूं। क्लास में हमेशा देरी से आता था। इम्तिहान में भी काॅपियां खाली छोड़कर चला जाता था। लेकिन देर आए दुरूस्त आए। अभी मैंने किताब देखी, पूरी लिखी हुई थी। अच्छा लगा। किताब का टाइटिल भी ‘दिल झंपिंग….छपाक… नहीं झपांग… चंपक… नहीं झंपक झंपक‘ बिल्कुल नया है। मैं चमन को बधाई देता हूं कि उसकी किताब लोकप्रिय हो।
(काॅपियां खाली छोड़ने की बात सुनकर घबराए चमन ने बधाई शब्द सुनकर पसीना पोछा )
लपरझन्ने ने फिर माइक संभाला-करेला कुमार जी की हमने चमन के लिए मीठी बातें सुनीं। अब मैं मास्टर साहब झमेला बाबू को बुलाना चाहूंगा। जिनकी क्लास हमेशा थकेली रहती थी। लेकिन दिल के बड़े अच्छे हैं, कोई बच्चा स्कूल आए न आए कुछ नहीं कहते थे। हालांकि वे खुद स्कूल कम आते थे। इसलिए पास सभी को कर देते थे।

झमेला बाबू ने कुर्सी से उठकर कमर सीधी की और माइक की ओर बढ़े-लपरझन्ने और चमन दोनों मेरे प्रिय शिष्य रहे हैं। दोनों बचपन में लापरवाह थे। पर लगता था कि बड़े होकर कुछ अच्छा काम करेंगे। चमन की किताब मैंने पढ़ी। मुझे कविताएं समझ नहीं आती और आज भी समझ नहीं आई। इससे लगता है कि चमन ने अच्छी कविताएं लिखी हैं। चमन ने अपनी कविताओं में बेहद सरल भाषा का प्रयोग किया है। (कठिन भाषा वैसे भी चमन को कौन सी आती थी।) चमन के शब्द बेहद आम बोलचाल वाले हैं। किताब में कभी ईरान तो कभी तुरान बात पहुंच जाती है। जैसे यह कविता-
मेरे बच्चे को तू खिला।
मैं भी था ऐसे ही पला।
खाना खाता हूं तला-तला।
रात को बीवी देती है सुला।

इसमें चमन क्या बात कह जाता है, यह रहस्य है। मुझे लगता है-इस किताब को जल्द ही पुरस्कार मिल जाएगा। क्योंकि हम जानते हैं जो फिल्म किसी को समझ नहीं आती, उसे हमेशा आस्कर पुरस्कार मिलता है।
झमेला बाबू ने अपना भाषण खत्म किया और सीट ग्रहण की। अंत में लपरझन्ने ने चमन से माइक पर आकर किताब के बारे में कुछ बोलने को कहा। पहली बार मंच पर खड़ा हुआ चमन पसीने से तरबतर हो गया। उसके पैर कांपने लगे, उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे 440 वोल्ट के करंट का झटका दे दिया हो।

पांच मिनट तक आवाज निकालने की कोशिश के बाद चमन ने बड़े धीमी आवाज में बोला-बहुत अच्छा लग रहा है। आप लोगों ने मेरी किताब और मेरी प्रशंसा की। आप सभी का आभार। इतना कहकर चमन कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी पर बैठते ही उसने रूमाल निकाला और पसीना पोछा। दो दिन तक चमन जबरन लोगों को पकड़-पकड़कर फ्री में किताब थमाता रहा।

-गौरव त्रिपाठी, युवा व्यंग्यकार, हल्द्वानी, उत्तराखंड

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