और शकीला मंच पर जम गयी

सरस्वती हाईस्कूल में 4 बार फेल क्या हुई, उसके बाप ने उसकी शादी शहर में एक अनाथ लड़के से करा दी। इससे बाप के कन्धे का बोझ तो उतर गया पर गांव के लड़कों का दिल टूट गया। लड़कों को खिड़की ताकने और स्कूल जाने वाले रास्ते पर मंडराने की अपनी दिनचर्या बदलनी पड़ी। उधर सरस्वती का बाप भी आश्चर्य में था कि पहले गांव के लड़के कभी सिलेंडर घर पहुंचा जाते थे तो कभी गाय भैसों का हालचाल पूछने चले आते थे। आजकल तो वो 4-4 दिन तक बीमार रहता है और कोई झाँकने नहीं आता। खैर सरस्वती शहर में अपने सीधे पति के साथ मस्त थी। धीरे-धीरे जब सरस्वती को शहर की हवा लगी तो उसे अपना पति बेवकूफ लगने लगा। अधिकतर पत्नियों को दूसरे दिन ही ऐसा लगने लगता है लेकिन सरस्वती गांव से आई थी इसलिए उसे थोड़ा टाइम लग गया। वह तलाक का मन बना ही रही थी कि गांव की तरह शहर में भी 4-5 आशिक सरस्वती के साथ अपनी दिनचर्या बनाने लगे। सरस्वती ने भी घूमना फिरना शुरू कर दिया। एक दिन एक कुख्यात श्रंगार रस के कवि अकेला बेचैन सरस्वती से टकरा गए। उन्हें ऐसा लगा जैसे उनकी उजड़ी बगिया के फूल खिलखिला गए।
 ( कवि की एंट्री के बाद अब कहानी तुकबंदी में चलेगी।)
अकेला ने सोचा अब सरस्वती के साथ कवि सम्मेलनों में खूब रंग जमेगा। क्योंकि पुरानी सारी कवयित्रियों ने उन्हें दिखा दिया था ठेंगा।
अकेला जी ने कहा-क्या तुम्हे कोई कविता आती है।
सरस्वती बोली- ये पढाई वढ़ाई मुझे नहीँ भाती है।
अकेला- कवि सम्मेलनों में चलो वहां आनंद और रुपयों का मेल है।
सरस्वती-पर मेरी तो शैक्षणिक योग्यता ही हाईस्कूल फेल है।
अकेला-चिंता न करो तुम्हारे लिए कविता ये अकेला लिखेगा।
आज से ये सारा जहाँ तुम्हे ‘शकीला’ कहेगा।
ये सुन सरस्वती ने शकीला नाम जोड़ लिया।
पति को तलाक दिया और बच्चों को भी छोड़ दिया।
पहली बार मंच पर जब शकीला को सुन श्रोता घबराने लगे।
ये देख समां बांधने के लिए मंच संचालक अकेला जी ठुमके लगाने लगे।
अकेला नाचा, शकीला नाची, कवि सम्मेलन की वाट लग गई थी।
पर चाहें कुछ भी हो शकीला मंच पर जम गई थी।
-गौरव त्रिपाठी, हल्द्वानी
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