ओ मेरे प्यारे बाबा तेरी थपकी कैसे भूलूंगी।
गोदी पर रख कर सर
जो अक्सर ही आ जाती थी
वो मीठी गुड़भरी सलोनी
झपकी कैसे भूलूंगी
ओ मेरे प्यारे बाबा
तेरी थपकी कैसे भूलूंगी।
एक दिवस ब्याह बीते
तेरी यादें कनक बहाएंगी
किसके कांधे भिगा के कॉलर
जी भर के मै रो लूँगी।
ओ मेरे प्यारे बाबा तेरी थपकी कैसे भूलूंगी।
झूला बनी बाजुएं तेरी
घोड़ा तेरी पीठ बनी
मूछे बनी खिलौना मेरा
मेरा हँसना तेरी जीत बनी
किसकी गर्दन टांग हाथ फिर बच्ची बन मै खेलूँगी
ओ मेरे प्यारे बाबा
तेरी थपकी कैसे भूलूँगी।
तेरी आप बनाई लोरी सुन सुन बेटी कितनी बड़ी हुई
आज बिदाई के दामन
मोतिया बहाये खड़ी हुई
तेरे लिए शाम की चाय बनाये
बिना मैं कैसे रह लुंगी
ओ मेरे प्यारे बाबा
तेरी थपकी कैसे भूलूंगी
खुद भूखा रहकर बाबा
हाथो से कौन खिलायेगा
काम से थोड़ी थक जाऊ
माथे को कौन दबाएगा
तेरे सिवा कौन होगा
जो घिस मज़बूत बनाएगा
इस पथरीले पथ पर मुझको चलना कौन सिखाएगा
बिना तेरे साये उस घर मे
कैसे बता मै रह लूँगी
ओ मेरे प्यारे बाबा
तेरी थपकी कैसे भूलूंगी।
“अक्षर”