ओ पापा तुम कितने अच्छे हो
ओ पापा तुम कितने प्यारे हो
सबका ध्यान रखने वाले
इतना प्यार करने वाले।
तुम हो बिल्कुल चांद के जैसे,
चांद भी तुम से कम है,
मेरी आंख आज नम है।
पाल-पोसकर बड़ा करने वाले,
चलना तो मैंने, मां से ही सीखा।
लेकिन तुम हौसला बढ़ाने वाले
किसी भी चीज में गिर जाउं तो हाथ देकर उठाने वाले।
ओ पापा तुमसे बढ़कर मेरे लिए
इस जीवन में कोई नहीं
तुम मुझे फोन और टैब नहीं देते तो क्या
तुम मुझे अपना सुनहरा दिल देते हो
पापा तुम भगवान हो
मां तो मेरी बहुत प्यारी है
लेकिन बेचारी काम करती रहती है
ओ पापा तुम ही हो जो मेरे लिए
अपना हर काम छोड़ देते हो
पापा तुमसे बड़ा कोई नहीं है।
तुमने मुझे अपनी कविता में
बहुत से रूप दिए हैं।
मेरी बुआ भी प्यारी हैं,
वो मेरा काम करती हैं
मेरी तबियत सही न हो तो
मेरा सबसे ज्यादा ध्यान रखने वाली
इतना प्यार देने वाली
आज सुबह जब मैंने एक लड़की को साइकिल चलाते देखा
तब पापा बोले बेटी तू चिंता मत कर
मैं तेरे लिए भी एक साइकिल ले आउंगा।
आज जब मेरे सिर में दर्द हो रहा था
तब पापा बोले-दर्द में एक जगह बैठे मत रहो
दर्द को पीछे छोड़, आगे आ जाओ।
पापा तुमने कहा था कि इंसान अपने काम से बड़ा बनता है।
पापा तुमने ही मुझे सब कुछ सिखाया
पापा मैं फिर बोलती हूं कि
तुम मां और बुआ मेरे सबकुछ हो।
चलिए अब एक कविता का
अंत तो आता ही है
मेरी कविता को इतने ध्यान से सुनने के लिए धन्यवाद।
-प्रतिष्ठा वशिष्ठ ‘‘नीलकंठा‘‘