जब कोई बच्चा, पापा कहकर,
दौड़कर अपने पापा के पास जाता है।
मेरी आंखें भर जाती हैं,
मैं भी अपने पापा से,
मिलने को तड़पती हूं,
पापा मैं आपको बहुत याद करती हूं,
उंगली पकड़कर चलना आपने सिखाया।
अपने कंधे में बिठाकर,
वो सतरंगी मेला आपने दिखाया।
याद है आपका, फटे जूतों में,
शादियों में जाना,
पर मेरे लिए नई-नई फ्राॅक लेकर आना,
मेरे बचपन में आपने,
रंगीन चूड़ियां, काजल का टीका लगाकर
मुझे गुड़ियों की तरह सजाया था
मेरी टेढ़ी-मेढ़ी चोटी खोलकर
आपने चोटी बनाना सिखाया था,
आ जाओ न पापा,
देखो, आज मैं चोटी खुद बना लेती हूं,
मैं आज भी आपको बहुत याद करती हूं।
वो मेरा स्कूल की पिकनिक पर जाना,
अपना ध्यान रखना कहकर
अपनी धुंधली आंखों से
मेरी बस की खिड़की पर,
आपका टकटकी लगाना,
आपका हाथ पकड़कर मैंने
सड़क पर ही नहीं,
जिंदगी में चलना सीखा है,
महक रही, जो मैं बगिया सी,
आपकी मेहनत का ही फल है,
जिन संस्कारों से आपने मुझे सींचा है,
जहां भी जाते थे आप
मेरे लिए बालियां लेकर आते थे,
आपकी लाईं हर बालियां,
मैंने संभालकर रखीं हैं
हां नाराज हूं मैं आपसे,
इसीलिए वो बालियां,
नहीं पहनती हूं,
आ जाओ न पापा
मैं आपको बहुत ज्यादा याद करती हूं।
-शोभा, भवाली नैनीताल