मुझे छांव देकर भी खुद जलते हो धूप में,
मैंने सचमुच फरिश्ता देखा है, पिताजी आपके रूप में।
पिता!!!
परिवार का रोटी, कपड़ा, मकान है।
पिता ही तो बच्चे के लिए खुला आसमान है।
पिता है तो बच्चे के लिए असीमित प्यार है।
पिता के होने से ही तो वीकेंड वाला ‘शनिवार’ है।
पिता ईश्वर की मूर्ति, सभी संसाधनों की पूर्ति है।
पिता के जीते-जी ही परिवार की स्फूर्ति है।
पिता की उपस्थिति मात्र से ही परिवार में उजियारा है।
पिता ही तो ताउम्र अपने बच्चों का सहारा है।
पिता पालक है, पोषक है, परिवार का अनुशासन है।
डांटकर हँस देने वाला वह पिता ही है जो प्रेम का प्रशासक है।
अगर
बात अपनी कहूँ तो,
होश सम्भालते ही आज तक,
दिन रात हम बच्चों के खातिर,
खून पसीना एक करके भी
आपका दिल मुस्कुराया।
इस नेक हृदय को सही मायनों में आज मैं समझ पाया।
मेरे जन्म से लेकर अब तक
माँ की सारी खुशियाँ देकर मुझको,
आपने हमेशा ही मुझे अपने कंधों पर बैठाया, गोदी पर सहलाया, खुद आधा- जूठा खाकर भी मुझको भरपेट खिलाया,
इससे भी अधिक कई त्याग करके आपने,
मेरा यह जीवन आपने इतना खूबसूरत बनाया।
पापा!!!
आपने ही तो माँ का सारा फर्ज निभाया है,
लेकिन अब तक आपके इस अहसान का मैंने रत्ती भर भी कर्ज नहीं चुकाया है।
यह उम्मीद तो है मुझे मैं एक अच्छा बेटा कहलाऊंगा,
श्रवण कुमार ना सही लेकिन सुकुमार बन कर दिखलाऊंगा।
घर की हर दीवार में समाहित जिसका खून पसीना,
वो ही मेरा महापुरुष वो ही सच्चा नगीना।
वही मेरा अभिमान,
वही मेरी पहचान,
हैं वही सर्वशक्तिमान।
हे ईश्वर! हमेशा खुश रखना उन्हें जो हैं मेरे कृपानिधान।
-योगेश जोशी
इलाईट पब्लिक स्कूल-मदनपुर, किशनपुर (गौलापार)