October 20, 2017 4Comments

अबकी बार दिवाली में

घर-आँगन का मैल हटाए, मन का तम भी टिक ना पाये
दीप ज्योति से होकर उज्वल, जीवन सबके खिलते जाए
सत्य शिरोमणि यथा योग्य, सब जन का आभार जताए
ज्ञान-ध्यान का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में

भूले-भटके रिश्ते जुड़ जाए, मन की गाँठे सब खुल जाए
क्षमा सबकी गलतियाँ करके, अपनी भूलों पर झुक जाय
बाती के धागों से गुथकर, प्रेम-स्नेह का प्रकाश दिखलाए
आदर-ममता का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में

नए-नए लक्ष्य निर्धारित कर, कठिन मार्ग पर बढ़ते जाए
हार का करे मुकाबला, विजय का गहरा विश्वास जगाए
सफलता के शिखर पर चढ़कर,  हौसलों को सत्य बनाए
मान-सम्मान का दीपक जल जाए,  अबकी बार दिवाली में

त्रिवेन्दर जोशी, हल्द्वानी। 

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gtripathi

4 comments

  1. अति सुंदर कविता ।।।

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  2. बहुत सुंदर

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  3. बहुत सुंदर कविता

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  4. अति सुन्दर अनुज, सच कहुं तो वास्तव में दीपावली का मर्म तुमने सटीक समझाया है, सलाम करता हूँ उस कलम को……और तुम्हारी विचार-धारा को…..।।

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