घर-आँगन का मैल हटाए, मन का तम भी टिक ना पाये
दीप ज्योति से होकर उज्वल, जीवन सबके खिलते जाए
सत्य शिरोमणि यथा योग्य, सब जन का आभार जताए
ज्ञान-ध्यान का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में
भूले-भटके रिश्ते जुड़ जाए, मन की गाँठे सब खुल जाए
क्षमा सबकी गलतियाँ करके, अपनी भूलों पर झुक जाय
बाती के धागों से गुथकर, प्रेम-स्नेह का प्रकाश दिखलाए
आदर-ममता का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में
नए-नए लक्ष्य निर्धारित कर, कठिन मार्ग पर बढ़ते जाए
हार का करे मुकाबला, विजय का गहरा विश्वास जगाए
सफलता के शिखर पर चढ़कर, हौसलों को सत्य बनाए
मान-सम्मान का दीपक जल जाए, अबकी बार दिवाली में
त्रिवेन्दर जोशी, हल्द्वानी।
October 20, 2017
अति सुंदर कविता ।।।
October 21, 2017
बहुत सुंदर
October 23, 2017
बहुत सुंदर कविता
October 24, 2017
अति सुन्दर अनुज, सच कहुं तो वास्तव में दीपावली का मर्म तुमने सटीक समझाया है, सलाम करता हूँ उस कलम को……और तुम्हारी विचार-धारा को…..।।