ऊगली पकड़ कर चलना सिखाया है,
अपने हित के लिए लड़ना सिखाया है|
मेरी छोटी से छोटी कामयाबी को भी आपने सेलीब्रेट किया है,
आगे बढ़ने के लिए भी तो पापा आपने कितना मोटीवेट किया है|
मम्मी की डाट से भी तो
पापा आपने कितना बचाया है,
कंधो पर बैठाकर अपने
बचपन में हर रास्ता नपवाया है|
बचपन में मेरी चोटी भी गूंदी है
और नाखून भी काटे है|
बस स्टाप पर छोड़ने तो पापा आप मुझे आज भी आतें हैं,
पर मेरे कहीं अकेले जाने के ख्वाब से आप ,
थोड़ा घबरा सा जातें हैं|
मेरे साथ खेलना हो या पङना,
पापा आप सबमें साथ देते हैं|
कोई परेशानी ना हो इसलिए आप मेरी ढाल बने रहते हैं|
मेरे सामान की लंबी सी लिस्ट हमेशा आपकी जेब में रहती है,
शाम को और कुछ आप लाओ न लाओ
झोले से चॉकलेट ज़रूर निकलती है|
बङी गलती करूँ तो थोड़ा गुस्सा आपको ज़रूर आता है,
पर मेरी तबियत खराब हो तो, आपका जी भी कितना घबराता है|
पापा, सारी ज़िदे पूरी की हैं मेरी
और गलतियां माफ भी,
परछाई बनकर चले हो आप, हमेशा मेरे साथ ही|
बहन और मेरी लङाई में आपने हमेशा कहा है,
कि मैं दाईं तो वह बाईं आंख है आपकी,
पापा, आप मेरी परछाई हो, और मैं आपकी||
-राजश्री तिवारी, भीमताल
June 11, 2020
That is a very beautiful poem I’d say ❣️❣️❣️❣️