माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी,
माँ के जैसा करते जाते अपने बाबूजी।
चूल्हा चौका पोछा बर्तन घर के बांकी काम,
माँ के पीछे ना करते आराम हमारे बाबूजी।
माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी,
माँ के पीछे माँ के जैसे भोग लगाते बाबूजी,
माँ के जैसे वृंदावन को नीर चढ़ाते बाबूजी।
माँ के पीछे गिनती भूले अपने भोले बाबूजी,
एक माँगों तो दो लाते हैं रोटी अपने बाबूजी।
माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी,
माँ के पीछे थोड़ा-थोड़ा खुलते अपने बाबूजी,
माँ के पीछे हम बच्चों से घुलते मिलते बाबूजी।
माँ के पीछे अब लगता है मित्र हमारे बाबूजी,
खुशियों वाले सतरंगी हैं चित्र हमारे बाबूजी।
माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी,
माँ के पीछे अब कुछ बूढ़े लगते अपने बाबूजी,
चाँदी बालों में बिखरी और बिन दांतों के बाबूजी।
आँखे भी कमजोर हो गयी कमर लगे कुछ झुकी-झुकी,
फिर भी पूरे घर के सिंघम बने हुए हैं बाबूजी।
माँ के पीछे माँ बन जाते अपने बाबूजी,
-त्रिवेन्दर जोशी, हल्द्वानी