न अश्रु बन छलकता है,
ना मुख पे कभी झलकता है।
पर सागर से भी गहरा सदा,
अदृश्य स्नेह पिता का होता है।
बिन सोचे बिन कहे मिले,
उनसे सुख वैभव सभी,
फिर जगकर दिन और रातों को भी,
ताउम्र चैन से कभी ना सोते।
थामकर उंगली जब से,
अंगना में चलना सिखलाए,
फिर दुनिया जहां दिखलाके भी,
उंगली कभी नहीं छोड़ते।
कभी नरमी कभी सख्ती से,
जीवन की राह दिखलाए,
पर बैठ पिता की गोद में,
ब्रह्मांड भी समा जाए।
बेटी परी, शहजादा बेटा।
पिता के ही होते हैं,
बस इनकी खुशियों के खातिर,
जीवन समर्पित कर देते हैं।
-प्रेमलता, चैखुटिया, अल्मोड़ा