हाँ मुझे प्रेम है
उस नन्हें बच्चे से
जो हँसते-हँसाते
रोते-बिलखते
कबाड़ के ढेरों से
दो जून की रोटी
ढूँढ रहा।।
या कहूँ उस से प्रेम
जो इक हया की
चादर में लिपटाकर
गली,नालों या
बीहड़ जंगलों में
वात्सल्यता की पुजारिन हाथों
फेंकी गयी हो।।
हाँ मुझे प्रेम उस माँ से भी है
जिसने नौ माह तक
कोख को सजाया
“मेरी औलाद” शब्द सींचा
आज वृद्धाश्रम की दहलीज पे
थके शरीर,झुकी कमर के साथ
बोझ स्वरूप रखी गयी हो।।
है प्रेम उस प्रेमी से भी
जिसने मुझमें प्रेम का
बीजारोपण किया
सहृदयता से स्वीकारा
पर इक शंकित भाव
की मर्यादित रेखा
मुझमें आज भी खींची गयी हो।।
हाँ मुझे प्रेम उस पिता से भी है
जिसने अपने कंधे,कमर
बोझ तले दबा
अपनी ख्वाहिशों को त्यागा
तुमने किया क्या?
ऐसे शब्द आज
कानों में घोले गए हों।।
है प्रेम इस लेखनी से भी
जिसने मेरे भावों को
सहज बन प्रेम से
कोरे कागज पे
उकेरने को
रंगीन शब्द जालों की
खुली किताब दी हो।।
है प्रेम उस दिल से भी
जो कौंधते सवालों के
उत्तरों को निर्भीकता से
हल करने की साजिशों
को अंजाम दे रहा
हाँ सच ही तो है “साँची
आखिर ये” प्रेम”तो प्रेम ही है।।
-सोनू उप्रेती”साँची”
बागेश्वर
November 11, 2017
बहुत सुन्दर
November 11, 2017
Bhawatmak rachana
November 11, 2017
अति सुन्दर…..
November 12, 2017
Very nice …dil ko chu gayi ..kp it up
November 12, 2017
सुंदर रचना। भावों को उकेरती रचना।
November 12, 2017
सुन्दर रचना।… बहुत शुभकामनाएँ।
November 12, 2017
बहुत बहुत सुंदर भाव
November 13, 2017
सुन्दर रचना,. बहुत बहुत बधाई