June 29, 2019 3Comments

“वर्षा कितनी मनभावन है”

वर्षा कितनी मनभावन है,
वर्षा कितनी मनभावन है,

हर बूंद है अमृत से परिपूर्ण,
हर बूंद है जीवन का प्रतीक,
हर कष्ट को करती हमसे दूर,
हर मन को करती यह विभोर;

यह कितनी शीतल,पावन है!
वर्षा कितनी मनभावन है,

कृषकों का जीवन यह ऋतु है,
यह जीवन है, यह अमृत है,
सौंदर्य की प्रतिमूर्ति यह,
सारे गुण इसमें समाहित है;

कृषकों का जीवन, तन मन है;
वर्षा कितनी मनभावन है,

खुशियों को ये संग लिए हुए,
रिमझिम रिमझिम ये किये हुए,
ग्रीष्म ऋतु को करे विदा,
संदेश अनोखा लिए हुए;

लेकर आता ये सावन है,
वर्षा कितनी मनभावन है,

यह ऋतु कितना सुख देती है!
सबके दुःख ये हर लेती है,
अस्त्तित्व खुद का समाप्त कर,
एक सुखद सवेरा देती है;

देती संदेश,नव जीवन है,
वर्षा कितनी मनभावन है,

सुयश कुमार द्विवेदी, दिल्ली

Social Share

gtripathi

3 comments

  1. बहुत ही सुंदर

    Reply
  2. WELCOME RAINY SEASON ! MONTH OF SAVAN : – प्रदोष व्रत में क्यों किया जाता है शि‍व पूजन?
    शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है.
    प्रदोष व्रत में शि‍व पूजन का विधान है प्रदोष व्रत में शि‍व पूजन का विधान है
    वंदना यादव
    नई दिल्ली, 03 जुलाई 2016, अपडेटेड 11:38 IST
    प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है.
    प्रदोष व्रत की महिमा
    शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि ‘एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.
    प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल
    अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है.
    – रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
    – सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
    – मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.
    – बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है.
    – गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है.
    – शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है.
    – संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए.
    अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.
    प्रदोष व्रत की विधि
    – प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.
    – नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.
    – इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
    – पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है.
    – पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
    – अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.
    – प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
    – इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
    – पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए

    Reply
  3. WELCOME RAINY SEASON ! MONTH OF SAVAN : – प्रदोष व्रत में क्यों किया जाता है शि‍व पूजन?
    शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है.
    प्रदोष व्रत में शि‍व पूजन का विधान है प्रदोष व्रत में शि‍व पूजन का विधान है

    प्रदोष व्रत की महिमा
    शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि ‘एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.
    प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल
    अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है.
    – रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
    – सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
    – मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है.
    – बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है.
    – गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है.
    – शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है.
    – संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए.
    अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.
    प्रदोष व्रत की विधि
    – प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए.
    – नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें.
    – इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
    – पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है.
    – पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
    – अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है.
    – प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
    – इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
    – पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए

    Reply

Write a Reply or Comment