है पिता सर्वस्व, जीवन का महत्व
न नाप सके कोई जैसे अंबर की ऊँचाई
कुछ कुछ वैसी ही होती है पितृ-प्रेम की गहराई।
है पिता जग का सार, अस्तित्व का है आधार
नमक की भाँति है प्रकृति इनकी
जो हो तो न हो आभास, न हो तो अधूरा रहे हर उल्लास।
है पिता वो कुम्हार, तक़दीर को दे जो सही आकार
खड़े हो जाते पर्वत की भाँति, संतान पर आए जो आंच ज़रा भी
कठोरता रहती तन पर सजी, इनके मन सा कोमल कहा कुछ भी।
है पिता वो कलाकार, करते जो हर स्वप्न साकार
प्रसिद्ध होते है कवि गागर में सागर भरने के लिए
मग़र,ये तो भर दें सागर भी गागर से केवल अपनी संतान के लिए।
है पिता वो प्राणी, जिनकी आज्ञा मेरे लिए है ईश्वर की वाणी
जिस प्रकार पानी पर पानी से पानी लिखना है असंभव
उसी प्रकार पितृ ऋण से ऋण मुक्त होना नहीं है संभव!!!
-ज्योति आर्या, महिला डिग्री काॅलेज, हल्द्वानी
June 10, 2020
Waah kya khub likha h
June 10, 2020
Nice lined
June 10, 2020
Well said
June 10, 2020
Superb❤️❤️❤️❤️
June 11, 2020
Nycc lines keep it up ☺
June 11, 2020
Superb bhut khoob
June 11, 2020
कोई जवाब नही इतना सुंदर काबिले तारीफ✨
June 11, 2020
Nice
June 11, 2020
Superb
June 11, 2020
बहुत खूब ♥️
June 11, 2020
मतलब कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी,
June 11, 2020
Beautiful line’s
June 11, 2020
Nice line jyoti…
June 11, 2020
Superb jyoti..❤️
June 11, 2020
nice line…
June 11, 2020
Wow!This is superb poem.I haven’t knew your this hidden talent.
Salute to your talent