June 03, 2020 0Comment

धूप में ठंडी छांव का साया पिता

पिता है चमकती धूप में ठंडी छांव का साया,
जिसने समाज के बीच हमें चलना सिखाया।

यह है वो वृक्ष, जिसने हर मौसम है झेला,
फिर भी हमें, ताजा-मीठा फल पहुंचाया।
जिसने बाहर चुप रहकर कठिन परीक्षा दी,
फिर भी घर हंसता चेहरा लेकर वापस आया।
स्वयं तो चैन की सांस भी ना ली,
फिर भी हम संग सदैव खुशी-खुशी समय बिताया।
खेला-कूदा, खूब घुमाया, फिर पुस्तक-कलम लेकर हमें पढ़ाया।
अंत में जब थककर चूर हुए हम, फिर कहानियों के पुल बांध सुलाया।
बापू श्रम करना तुमने सिखाया, ईमानदारी का हमेशा पाठ पढ़ाया।
कभी आंखों का रौब दिखया तो कभी मस्ती से कांधे पर उठाया।
संयम-नियम, अनुशासन में बांधा तुमने, आलस्य को हमसे दूर भगाया।?
पापा तुमने जो मुझे परिश्रम सिखाया न होता,
और सिर पर तुम्हारा साया न होता
तो यह सच है पापा, आज एक खुशहाल अनुशासित जीवन मैंने पाया न होता।

-डा. अंकिता चांदना, हल्द्वानी

Social Share

gtripathi

Write a Reply or Comment