June 05, 2020 7Comments

कोई तुमसा नहीं


तुमसा मुझे जहां में…..कोई नहीं दिखता,
हर ख्वाहिश कर दी पूरी करवा नहीं सकता।
करने को पूरे मेरे सपने तुम रात भर जागे
हम सोये गहरी नींद में तुम सोचते रहे।

उंगली पकड़कर सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया,
दे हथियार शिक्षा का मेरे विश्वास को बढ़ाया।
देख-देख कर हमको हर पल तुम जिये
करने को हमें काबिल क्या दर्द न सहे।

बचपन का दुलार दे, हमको शिक्षा का उपहार
विवाह की सौगात और विदाई पर आंसुओं को पी गए।
पूंछना हाल-चाल जैसे तुम्हारी आदत बन गया,
आज हैं हम जो भी तुम्हारा कर्ज चढ़ गया है।

-निशिता कत्यायनी शुक्ला, हरगोविंद सुयाल सरस्वती विद्या मंदिर हल्द्वानी

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gtripathi

7 comments

  1. Agr aap sbko meri beti ki poem achi lge toh plzz comment krke bataiye

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  2. Thank u meri pyari beti

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    1. बहुत सुंदर कविता निशिता, सच में माता पिता का कर्ज उतारा नहीं जा सकता

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  3. Very nice beta go ahead

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  4. बहुत सुंदर कविता निशिता, सच में माता पिता का कर्ज उतारा नहीं जा सकता

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  5. अतिसुन्दर

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  6. बहुत प्यारी कविता निशिता…

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