परवाज़ नहीं,
आवाज़ नहीं
न साज़ यहाँ..
जाग मछँदर गोरख आया,
तबला तब भी बोला था
महफ़िल सूनी, जोगी बोला,
भूमण्डल तब डोला था..
कबूल करो..
राजघराने छूट गये,
न राजघमण्ड छूट रहा
काल-खंड कई बीत गए,
न राजधरम कुछ याद रहा..
कबूल करो…
नाद-ब्रह्म सब छूट गए,
धर्म पिपासा कहीं नहीं
वो बैभव सारे छोड़ दिए,
अब अवधपति भी कहीं नहीं..
कबूल करो…
अपने-पराये सब मौन रहे,
जब शिखर चढ़े, मेरी और बड़े
कुछ याद रहा, कुछ भूल रहे,
”गौनिया” न कोई रतन जड़े..
कबूल करो..
-बीएस गौनिया, हल्द्वानी
September 19, 2017
bahut hi badiya kavita paath hai…
keep it up
September 20, 2017
achcha likha hai……
aur likho likhte raho… likhna achcha hai
September 20, 2017
me aaapki kavita padhte rahta hu fb pe
September 20, 2017
अपने-पराये सब मौन रहे,
जब शिखर चढ़े, मेरी और बड़े……
बहुत खूब लिखा।।।
जब कुछ हासिल होता है तभी सब हमारी ओर आते हैं या हमें पूछने लगते हैं…..
शुभकामनाएं …
September 23, 2017
keep it up suraj
September 23, 2017
gauniya bhai lge raho…
jaha n jaye kavi
waha jaye kavi
September 23, 2017
tu kab kavi ban gya….
kisi ladkee ne dhokha de diya kya ?
badiya hai.. lage rah